गोमूत्र, देशी गाय का मूत्र पीना अमृत के समान - कैप्टन अजीत वड़कयिल

यह आलेख/ब्लाॅग निम्नलिखित अंग्रेजी बेवसाईट/ब्लाॅग का मूलतः हिन्दी अनुवाद है।http://ajitvadakayil.blogspot.com/2013/02/gomutra-drinking-cows-urine-as-elexir.html

कृपया निष्पक्ष होकर संपूर्ण विषयवस्तु को समझते हुए अनुवाद में कुछ त्रुटियों के लिए क्षमा करें।

गोमूत्र, देशी गाय का मूत्र पीना अमृत के समान - कैप्टन अजीत वड़कयिल

मूल अंग्रेजी ब्लाॅग दिनांक- शनिवार 23 फरवरी, 2013


गोमूत्र का क्वान्टम (प्रमात्रा) प्रभाव, चक्र का पुर्नाविष्कार, 6200 वर्ष पुराने महर्षि चरक के आयुर्वेद ग्रंथों में मानव स्वास्थय हेतु गोमूत्र का महाऔषधि के रूप में प्रयोग -कैप्टन अजीत वड़कयिल



गोमूत्र में अद्भुत औषधीय गुण जैसे बायोइन्हेचर, एंटीबायोटिक, एंटीफंगल एवं एंटीकैंसर का पता लग जाने पर  वर्ष 2003 में अमेरिका द्वारा गोमूत्र पर एकाधिकार जमाते हुए पेटेन्टस् (यूएस पेटेन्ट न. 6,896,907 एवं 6,410,059) की स्वीकृति प्राप्त की थी। अत्याधुनिक लैब परीक्षण में पाया गया है कि एम.सी.एफ.-7 (स्तन कैंसर की कोशिकाएं) के विरूद्ध एंटीकैंसर एजेंट के रूप में गोमूत्र कैंसर की दवाई ‘‘टेक्साॅल’’ (पेस्लिटेक्सेल) की क्षमता को बढ़ाता है (यूएस पेटेन्ट न. 6,410,059)। 


पूर्व में नीम व हल्दी पर अपना पेटेन्ट (लाइसेंस) कराने की अमेरिकी नापाक कोशिशों का भारत ने सफलतापूर्वक विरोध किया है। प्राचीनकाल में भारतीय ऐसा करते हुए कभी नहीं पाये गये थे कि बेशर्म विदेशी आविष्कारकों की तरह हास्यापद ढंग में चीजों को पेटेन्ट करना आवश्यक किया जाए।


भारत द्वारा दो टूक शब्द ‘‘बस, बहुत हो गया’’ कहने के बाद यूनाइटेड स्टेटस पेटेन्ट एण्ड ट्रेड मार्क ऑफिस द्वारा यूनिवर्सिटी ऑफ मिस्सिसिपी को स्वीकृत किया गया हल्दी पर पेटेन्ट निरस्त कर दिया। लगभग 8000 साल से भारत में भारतीयों द्वारा स्वास्थ्य लाभ जैसे घाव भरना, आदि एवं दैनिक कार्यों में हल्दी के बहुआयामी प्रयोगों का यूनिवर्सिटी ऑफ मिस्सिसिपी, अमेरिका द्वारा सबूतों सहित गहन परीक्षण करने पर हल्दी को अपनी खोज घोषित किया जाकर पेटेन्ट हासिल की थी जोकि पूर्णरूप से हास्यापद है।


और, गोमूत्र भी अमृत के समान है।


8000 साल पहले, भारत का महर्षि चरक एक सर्जरी एवं औषधि का महान जानकार था जिसने सुश्रुत संहिता की रचना की। गोरे इसाई इतिहासकारों ने महर्षि चरक एवं उसकी कृति सुश्रुत संहिता का काल 4000 साल से कम का दर्शाया गया है क्योंकि बाईबिल कहता है कि बिगबैंग या जीवन उत्पत्ति वर्ष 4004 में हुई थी तो महर्षि चरक जैसे व्यक्ति वर्ष 4004 से पहले कैसे पैदा हो सकते।


वैसे ही, गोरे इसाई लोगों की गुलामी में कैद भारत के समय में लगभग सभी खोजें एवं आविष्कारों जो पश्चिमी देशों द्वारा की गई थी वे सब असल में भारत से चुराई गई थी। अब आपको समझ में आ गया होगा कि पश्चिमी देशों में इतनी खोजें एवं आविष्कारों का अचानक विस्फोट कैसे हो गया? क्या ये लोग आकाश से टपके दिव्य ज्ञान की मदद से अचानक इंटेलीजेंट बन गए थे?  उदाहरण -उनके हीरो वैज्ञानिक न्यूटन।


वेद अथवा आयुर्वेद में यह कभी नहीं लिखा है कि मानव मूत्र आवश्यक रूप से पीनी चाहिए। मूत्र का असली मतलब गाय का मूत्र होता है इसके अलावा कुछ नहीं। यह बात हमेशा ध्यान में रखे।


यह वह गोरा ईसाई आक्रमणकारी था जो संस्कृत पंड़ितों को दबाब में लाकर उनसे मनचाहा विषरूपी झूठा ज्ञान अथवा छंद अथवा पद संस्कृत में तैयार करवाकर किसी एक संस्कृत ग्रंथ में पेशेवर तरीके से उस विषरूपी झूठा ज्ञान को मिलाकर ‘‘डामर तन्त्र’’ नामक एक नये संस्कृत की रचना की जिसमें खुद का (मानव का) मूत्र पीने के फायदों के बारें में 107 पद लिखे गये है लेकिन ये मूर्ख नहीं जानते कि हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) में कोई भी हिन्दू (सनातन धर्मी) 108 की जगह 107 पद नहीं लिखता। ये दुराचारी-व्यभिचारी गोरे लोगों ने अत्यंत अनैतिक ढंग से इस मामले में और आगे बढ़ कर तंत्र के नाम पर सड़े हुए देह एवं अवशिष्ट या मल खाने के फायदों के बारे में भी अन्य झूठे पदों की रचना की थी।
यहां तक भगवान शिव भी को उस अघोरी के रूप में स्थापित किया गया जो शवदाह स्थलों में गुप्त रूप से मृत मानव देह को ढूंढ़ कर भोजन के रूप में सड़े गले मांस खाते है।


ओरिजनल मनु संहिता में भी यहीं झूठी बातें लिखवा कर सच्ची बातें की जगह लगा दी थी कि निम्न जाति के हिन्दुओं के साथ उच्च जाति के हिन्दु किस तरह से व्यवहार करने चाहिए साथ ही निम्न जाति के हिन्दुओं के कानों में पिघले हुए लीड अथवा पदार्थ डालने जैसी विचित्र सजाऐं भी जोड़ी गई। आज भी इस विषग्रसित मनु संहिता ग्रंथ के कारण निम्न जाति के हिन्दू अथवा दलित ऊंच जाति के हिन्दू से काफी घृणा करते हैं।


मूर्खों की तरह भारतीय प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी अपना मूत्र पीते थे। इस बात पर बेहतरीन शराब एवं सिगार के मजे लेते गोरे लोग मुंह दबाकर काफी हंसते रह गये। 


यह कहानी भी बनवायी गई थी कि भगवान अयप्पा की उत्पत्ति शिव और विष्णु के बीच हुई समलिंगीय संभोग से हुई। आज भी मोहिनी के बारे में ऐसी ही काफी निरर्थक या बकवास बातें इंटरनेट में गूगल सर्च की मदद से विकीपीडिया साइट में पढ़ सकते हो। 


यह सब गुलामी के समय में हुआ था जब भारत की लगभग सभी चीजों पर पूर्ण नियंत्रण विदेशी आक्रमणकारियों के हाथों में था। 


वे कुरान में विषरूपी झूठी बातें घुसाने या अल्लाह के बारे में गलत कहने की हिम्मत नहीं कर पाये क्योंकि उन विदेशियों को मुसलमानों द्वारा उनके सिर काटे जाने का बड़ा डर सताता था। 


हिन्दु शान्तिप्रिय एवं विनम्र होते हैं, सही है ना?

अब ऐसा नहीं होगा। 

मुंहतोड़ जबाव देना जानते है हम। 

अब हिन्दुओं के खून से गुलामी के कीड़े का नामोनिशान मिट गया है।


क्या गलत ढंग से गोरे इसाई इतिहासकारों ने ही यह तथ्य स्थापित नहीं किये गए थे जोकि इंटरनेट एवं डीएनए के युग में ये तथ्य झूठे साबित होकर मुंह के बल गिर गये है। वह झूठा तथ्य था कि गोरे, सुनहरे बाल नीली आंखों वाला आर्यन आक्रमणकारी ने हमारे अमूल्य वेदों की रचना की थी। 


गोमूत्र एक शक्तिशाली इलेक्ट्राॅलाइट होता है। आपके लिए घर में एक प्रयोग है। आप गोमूत्र की मदद से घड़ी बिना नाॅर्मल बैटरी के चला सकते हो। काॅपर और जिंक के दो पतले तार के एक हिस्से को गोमूत्र में डूबा कर दूसरे हिस्से को घडी से कनेक्ट करें-और घड़ी छः माह तक चलेगी।
गोमूत्र की शक्ति सिर्फ कैमिकल्स एवं मिनरल्स के बड़े भण्डार होने के कारण ही नहीं है बल्कि एक शक्तिशाली इलेक्ट्राॅलाइट के रूप में निहित है।


जब गौमाता के मूत्र करने के दौरान दो मिनट की अवधि में गोमूत्र पीने से क्वांटम एक्शन होता है अर्थात सही व पूर्ण लाभ मिलता है। विशेष रूप से यह ध्यान रखना है कि गाय गर्भवती ना हो, स्वस्थ हो और सड़क पर प्लास्टिक ना खाती हो। 

सबसे महत्वपूर्ण बात, यहां भी एक अध्यात्मिक पहलू भी है। गाय भारतीय नस्ल की होनी चाहिए। इस प्रकार की गायों की पीठ पर कूबड (हम्प) भी होने चाहिए। विदेशी सपाट पीठ वाली जर्सी गायें, क्षमा करें।

सावधान-बिना कूबड़ वाली (हम्पलेस) पश्चिमी गायें विषाक्त ए-2 मिल्क एवं विषाक्त मूत्र देती है।

किसी गौशाला में शुरूआत में एक बार 5 मिलीलीटर और इसके बाद 10 मिलीलीटर या हथेली भरकर गोमूत्र ही पीना चाहिए इससे ज्यादा नहीं। आप चाहे तो सड़क पर घूमती आवारा कचरा-प्लास्टिक खाने वाली गाय को एक सुरक्षित एवं अच्छी जगह या अपने घर के अहाते में रख कर इनको अपना महत्वपूर्ण एवं पूजनीय पारिवारिक सदस्य मानते हुए स्वास्थय जांच करवा कर एक माह तक अच्छा भोजन खिलाकर इनके पेट से सारा अनुपयोगी पदार्थ हटा कर इनको उपयोगी बनाया जा सकता है।


गव्यम पवित्रम च रसयणम च पथ्यम च हृृदयम बलम बुद्धि सयता
आयुह प्रदम रक्त विकार हरि त्रिदोष हृदरोग विशपहम सयता


संजीवनी अनुवादः गोमूत्र पंचगव्य महान अमृत, उचित आहार, हृदय को प्रसन्नचित करने वाहा, मानसिक एवं शारीरिक शक्ति प्रदाता एवं आयु को बढ़ाने वाला है। यह वात, पित्त और कफ के बीच संतुलन बनाता है। यह हृदय संबंधी बीमारियों और विष के प्रभावों को दूर करता है।


मूत्रेषु, गौमूत्रम गुंतो अधिकम. अविशेशट कथने, मूत्रम गौमूत्रम्युच्चयते.

अनुवादः- सभी मूत्रों के बीच एकमात्र गोमूत्र ही सर्वश्रेष्ठ है।


7000 वर्ष प्राचीन पवित्र ग्रंथ जैसे अर्थववेद, चरक संहिता, रजनी घुंटू, वृधभागभट्ट, अमृतसागर, भवप्रकाश, सुश्रुत्र संहिता आदि में गोमूत्र के स्वास्थय लाभों का विशेष रूप से वर्णन किया गया है।



आओ, मैं आपको गोमूत्र के प्रभावों में निहित वैज्ञानिकता की कुछ बातों का परिचय करवाता हूं


प्रत्येक व्यक्तिगत मानव कोशिका की दो विशेषताऐं होती हैं-केपेसिटेन्स एवं इण्डक्टेन्स जोकि एक इलेक्ट्रिक सर्किट के तत्व होते हैं। ताजा गोमूत्र स्कैलर हीलिंग एनर्जी (अदिश स्वास्थयवर्धक ऊर्जा) पर अच्छी पकड़ बनाये रखती है। हीलिंग एनर्जी बाॅडी टिश्यू में बहुत छोटी छोटी घुमावदार करंटों को निर्मित करती है।


बिना किसी अपवाद के कैंसर कोशिकाऐं (कम विद्युतीय दाब-लो वाॅल्टेज) 15-20 मिली-वाॅल्ट रेंज में होती है। मानव शरीर में पायी जाने वाली अधिकतर कोशिकाओं के लिए 70-90 मिली-वाॅल्ट रेंज ही सर्वोत्तम होती है। जब किसी कोशिका की वाॅल्टेज उस रेंज में डाउन होना शुरू होता है जहां कोशिका के सामने जीवित बच जाने अथवा नष्ट होने से बचने का प्रश्न खड़ा होता है तो लुप्तप्राय होने के कगार जीवित बचने की गांरटी पाने कोशिश में कोशिका अनियंत्रित होकर असंख्य रूप से बढ़नी शरू कर देती है। यही सब कुछ कैंसर के बारे में संक्षिप्त रूप से कहे जाते हैं।


अगर आप कोशिका की वाॅल्टेज को बढ़ाते है तो यह कोशिका को विस्तृत रूप से बढ़ जाने की कोई आवश्यकता नहीं होती। प्रभाव में, यह कोशिका वापस सामान्य रूप में आती है। कैंसर के इलाज में यह तरीका काफी कारगर साबित हो सकता है। सम्पूर्ण शरीर की ऊर्जा अर्थात कोशिकीय ऊर्जा में वृद्धि शरीर में मौजूद अरबों कोशिकाओं को 70-90 मिली-वाॅल्ट की नोबल रेंज में लाने से होती है। शरीर में मौजूद प्रत्येक हाइड्रोजन एटम का स्तर के साथ सहसंयोजित ऊर्जा वृद्धि को स्पेक्ट्राॅग्राफ द्वारा प्रमाणित किया जाता है।


यह प्रत्येक कोशिकाओं के अंदर पोषक तत्वों को पहुंचाना आसान कर देती है और अंदर से अपोषक तत्वों को भी बाहर निकलवा देती है। खून की सफाई की यह प्रक्रियाऐं साइलोमिक्रोन लेवल (रक्त में तैरने वाले प्रोटिन एवं फैट के सूक्ष्म तत्व), टरीगलीसिराइड प्रोफाईल्स एवं फाईब्रिन पैटन्र्स में सुधार लाती है। यह इम्युन फंक्शन्स में सुधार लाता है। इस प्रकार से शरीर के रक्त में मौजूद हानिकारक, अनुपयोगी एवं अवशिष्ट पदार्थ नष्ट हो जाते हैं।


बदले में यह कोशिकीय परफाॅरमेंस को सर्वोत्तम बनाने में सहायता प्रदान करता है। उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमी करते हुए आयु संबंधी बीमारियों से बचाव किया जा सकता है। टिश्यू वाॅल्टेज में वृद्धि शरीर के एंजाईम्स की एक्टिविटीज में सुधार लाते है, विद्युतीय कणों के आवागमन कोशिकीय स्तर तक बढ़ाते है तथा मेम्ब्रेन पोटेन्टायल्स को प्रभावित करते है।


गोमूत्र में काॅपर होता है। स्कैलर (अदिश) एनर्जी मानव एवं जीव-जंतुओं में उप-परमाणविक स्तर पर कार्य करने में सक्षम है और स्कैलर की कुछ आवृत्तियां वायरस और बैक्टीरिया को नष्ट करती है। शरीर घने पदार्थों से मिलकर नहीं बनता है अपितु लगातार घूमती हुई चक्रीय ऊर्जा (एनर्जी) उच्चतम आवृत्ति (फरिक्वेंसी) पर कंपकित होकर कठोर पदार्थ का रूप देती है।


मानव शरीर का लगभग 70 प्रतिशत भाग में पानी होता है। सोडियम और पोटेशियम जैसे विघटित आयनों के संकेन्द्रण में परिवर्तन होने से कई सक्रिय जैविकीय कम्पाउण्डस एकदम से बंद या चालू हो जाते हैं। हाइड्रोजन बाॅण्डस को बनाने की प्रवृत्ति के साथ प्रत्येक जल-अणु प्रोटीन की संरचना को भी स्थिर करते हैं क्योंकि सही संरचनाएं सक्रिय होने के लिए काफी महत्वपूर्ण है।


यदि हाइड्रोजन बाॅण्डस का कोई अणु बदल या बिगड़ जाता है तो बाकी अणु उस बिगड़े अणु का अनुसरण करेगे (डोमिनो इफेक्ट के रूप में)। आपके शरीर के जिंदा रहने के लिए पाचन शक्ति ऊर्जा निमार्ण हेतु धीमी अग्निक्रिया से ज्यादा कुछ नहीं है। तथ्य में, मृत्यु जब होती है तब मस्तिष्क में कोई इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी का अभाव हो।


हमारा आणविक और जैविकीय सांचा दर्दभरे अनुभवों अथवा बायोलोजिकल संक्रियाओं को याद करता है। यही कारण होगा कि इन समान अनुभवों के डर के कारण हम ऐसी परिस्थितियों से बचते है। अवरूद्ध या कसी हुई ऊर्जा हमारी आदतों पर कई बार प्रभाव ड़ालती है और नकरात्मक धारणाऐं भी बनती है। परिणामस्वरूप स्वास्थय खराब रहता है।


हद्य की मांसपेशियों की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी (विद्युतीय गतिविधि) हद्य का इलेकट्राॅमैग्नेटिक फील्ड की स्थापना करती है जोकि शरीर की सबसे मजबूत फील्ड होती है। यह हद्य में रक्त-कोष्ठिय मोबियस कुंडल (इस स्थान पर जहां हद्य के दायें ऑट्रियम से बहती हुई रक्त की नली के उपर बायें ऑट्रियम से आती हुई रक्त की महाधमनी ढ़कती है) के केन्द्र में पायी जाती है। 


अतः फिर से कहता हूं कि देशी कूबड़ वाली गाय का गोमूत्र एक शक्तिशाली इलेक्ट्राॅलाइट होता है। गोमूत्र की शक्ति सिर्फ कैमिकल्स एवं मिनरल्स के बड़े भण्डार होने के कारण ही नहीं है बल्कि एक शक्तिशाली इलेक्ट्राॅलाइट के रूप में निहित है। इसलिए गोमूत्र अमृत है।

हमारे शरीर में 100 खरब से ज्यादा कोशिकाऐं होती है।


चार्ल्स डाविन और उसके बंदर गैंग ऐसी उपरोक्त वैज्ञानिकता की बातें कभी नहीं सोच सकते, सही है ना?


सर्वप्रथम, गोमूत्र ही क्यों? एक सामान्य कारण यह है कि गाय एक शाकाहारी प्राणी है जो खाने पीने में जितना समय लेती है उतना ही समय मूत्र और गोबर देने में लगाती है। और यह ताजा सफेद दूध देती है।


क्या आपने कभी देशी कूबड़ वाली गाय को सूंघा है? इसकी गंध बहुत अच्छी है।


गाय के शरीर में चार अमाशय होते हैं। गाय द्वारा भोजन खाते समय अपने अमाशयों की मदद से घास और चारा विशेष पाचन प्रक्रियाओं से होकर गुजरती है। जब गाय प्रथमतः खाती है, कुछ खाना इतना चबा लेती है कि निगल सके। और बिना चबा हुआ कुछ खाना प्रथम दो अमाशयों (रूमेन और रेटिक्लम) में जाता है, जहां कुछ समय के लिए खाना संगृहित होता है। जब गाय का पेट भर जाता है तब गाय आराम करती है। 


बाद में, गाय अपने पेट से बिना चबा हुआ थोड़ा सा खाना खांस कर बाहर निकाल कर मुंह में लेती है जिसे जुगाली कहते है और यह खाना फिर से पूरी तरह चबाकर दुबारा निगल लेती है। दुबारा निगलने के बाद यह खाना अर्थात जुगाली तीसरे और चैथे अमाशय (आॅमेशम और अबोमेशम) में जाता है जहां पूरी तरह से पच जाता है। इनमें से कुछ पचित खाना रक्त में मिलकर कुछ मात्रा में एक थैली (उड्डेर) में जाता है जहां दूध में परिवर्तित होता है जो गाय की चूची से बाहर निकलेगा और बाकी मात्रा में गाय को पोषण के रूप में प्राप्त होता है।


इसलिए गाय का गोबर और मूत्र कोई घृणास्पद/घिनौनी चीज नहीं होता है।



गाय में कोई अहंकार (ईगो) नहीं होता है।

अहंकार रहित प्राणियाँ ही दिव्य ऊर्जा का माध्यम होती है।

कल्पना कीजिए कि सड़क पर सभी प्रकार के जानवर लेटे हुए हैं, आप फुल स्पीड के साथ इन सबकी तरफ गाड़ी चला रहे है तो सिर्फ गाय को छोड़कर बाकी सभी जानवर डरकर सड़क से हट जायेगे।

गाय का आप पर विश्वास है कि आप इसे नहीं कुचलोगें। गाय इतनी शांतिप्रिय होती है। सिर्फ देने के अलावा गाय कभी आपको नुकसान नहीं पहुंचाती है। 


कुछ समय के लिए रूक कर आपने सोचा है क्या कि सूअर जब उपयोगी होता है तब इसकी मौत हो?


ब्रिटिश खुद को बहुत होशियार समझते थे। वे दूध अधिक चाहते थे और पैसे ज्यादा बनाना चाहते थे। तो ये लालची ब्रिटिश लोगों ने अपने देश ब्रिटेन में गायों को मांसाहारी चीजें खिलाये थे। देखिए इसका क्या परिणाम हुआ- मेडकाउ बीमारी (दिमागी संबंधी घातक बीमारी)। आज इंटेलीजेंट ब्रिटिश जाति एक इतिहास बन चुकी है।

भारत में गायें पवित्र एवं पूजनीय होती है।


स्टीव जाॅब्स भारत को कभी पसंद नहीं करते (इस पर हम भारतीयों को कोई फर्क नहीं पडता है)। उसने भारत से दुम दबाकर भाग गये जब भारत में गाय का अपमान करने पर आसपास की भीड़ ने उनकी खूब ठुकाई कर दी थी।

सो... नोस्टल्जिया (विषाद या उदासी) को अलविदा!

मुझे 20 वर्ष पुरानी एक घटना की याद आ गई। जब अमेरिका के किसी एक बंदरगाह में मेरे जहाज का एजेंट मुझे बताया गया कि वो मुम्बई, भारत घूम चुका है तो मैने उनसे मुम्बई की किसी एक सड़क का नाम पूछा। उसने मुम्बई में एक पुलिस स्टेशन का नाम बताया और कहा भी कि वो एक रात के लिए थाने में बंद हुआ था।

तो मालूम पड़ा कि रोड़ के बीच में बैठी गाय के कारण बड़ा ट्रेफिक जाम हो रहा था। तो यह आदमी जोश में आया और टैक्सी से उतर कर खुशी से बैठी हुई जुगाली चबाती हुई गाय की बेचारी पीठ पर उसने तड़ाक की आवाज के साथ लात मारी थी।

यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह मंजर देखने वाले सभी लोग भौच्चकें रह गये और जब से इस आदमी उन क्रोधित लोगों के सामने आकर खुद द्वारा अभी किये गये अनोखे कर्म के कारण इतना गौरन्वित होते जा रहे थे तब से उस आदमी ने अपनी एडी को ठंडी करते करते में पुलिस थाने में पूरी रात गुजार थी। अन्यथा पुलिसवाला भी बुरी तरह से पिट जाता।


अग्निहोत्र अनुष्ठान में गाय के गोबर का उपयोग होता है।


अत्याधिक मोटे लोगों के लिए केवल गोमूत्र आपकी सहायता कर सकता है। गोमूत्र के अपने काॅपर आयन्स के लिए जो फैट/वसा/चर्बी को जमा नहीं होने देता है और कोलेस्ट्राॅल के स्तर को नीचे रखता है। इसके पास हार्मोन्स होते हैं जो फैट को विघटित करते हैं। सुबह में सबसे पहले शहद और नींबू रस के साथ गोमूत्र पीए। गोमूत्र कोशिकाएं एवं ट्श्यिू की उपापचयी (मेटाबाॅलिक) क्रियाओं में वृद्धि करता है।




गोमूत्र का वैज्ञानिक विश्लेषण करने पर यह पाया गया है कि गोमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फर, फोस्फेट, सोडियम, मैन्गनेस, कार्बोलिक एसिड, आयरन, सिलिकाॅन, क्लोराइन, मैग्निशियन, मेल्सि, साइट्रिक, टाइट्रिक, स्क्कैनिक, कैल्शियम साल्ट्स, विटामिन ए, बी, सी, डी, ई, मिनरल्स, लेक्टाॅज, एन्जाईम्स, क्रिएटिनाइन, हार्मोन्स और गोल्ड एसिड़ पाये जाते हैं।


सभी रोगों के लिए गोमूत्र एक प्राकृतिक रामबाण सर्वरोगहारी औषधि है।


यह एंटीसेप्टिक-रोगाणुरोधक, डेटोक्सीफिसेंट-अवशिष्ठरोधक, जर्मीसीडल-कीटाणुनाशक, एंटीमाइक्रोबायल- सूक्ष्मजीवीरोधक, डियूरेटिक-मूत्रवर्धक, ब्लड़ प्यूरीफायर-रक्तशोधक, अपीटीजर-क्षुधावर्धक, ग्रोथ हार्मोन-हार्मोनवर्धक, एंटीकेरसिनोजेनिक-कैंसरकारकतत्व विरोधी, इम्युनिटी इन्हेचर-रोगप्रतिरोधशक्तिवर्धक, एंटीफंगल-फफूंदरोधक, एंटीबैक्टिरियल-जीवाणुरोधक, सूक्ष्मपोषकतत्वों (एंजाईम्स) की क्षतिपूर्ति करने वाला, एंटीएलर्जीक, एंटीबायोटिक एवं एंटीहेल्मिनटिक-परीजीवीरोधक है। 


यह एंटीऑक्सीडेंट, डेजेस्शन इन्हेचर-पाचनशक्तिवर्धक, एंटीइंफ्लेमेटरी-सूजनरोधक, आंत में पाये जाने वाले कीड़ो को नष्ट करने वाला, दाद-खुजली-सोरायसिस जैसे त्वचीय/चर्म रोगों को दूर करने में लाभप्रद, डेटोक्सीफायर, रक्तशुद्धक, पित्त स्टेब्लाईजर, हेमोग्लोबिन के निर्माण में वृद्धि करने योग्य, एनेमिया में लाभप्रद, यूरिनरी ट्रेक्ट स्टोन को हटाने वाला, एसिडरोधक, आई इंफेक्शंस-आंखों के संक्रमण के लिए प्राकृतिक निस्संक्रामक और कीटनाशक, सांप जैसे जीवों को दूर भगाने वाला, माईग्रेन में लाभप्रद, अश्वगंधा के साथ स्मरणशक्ति बढ़ाने वाला, कब्ज में लाभप्रद, आयुवृद्धि को धीमी करने वाला, रक्त के थक्के को घुलवाने वाला, माहवारी चक्र को समान्य करने में लाभप्रद, टूयमर्स को दूर करने में लाभप्रद, पीलिया में नियंत्रण, पाचन में सहायक, पेट संबंधी रोगों में लाभप्रद, त्वचासूजनरोधक, जलमात्रा एवं अम्ल में साम्य बनाने में बेस बैलेंस-आधार संतुलक, मस्तिष्क विकार अथवा मिर्गी जैसी मानसिक दशाऐं एवं रोगों में लाभप्रद, स्किन टाॅन में सुधारक, असामान्य माहवारी चक्र को सामान्य करने वाला, अग्नाश्य के कार्यों में वृद्धि करते हुए इंसुलिन के लेवल को मेंटेन बनाये रखने वाला, विचलित अथवा व्यथीत मन को शांत करने वाला, बवासीर में लाभप्रद, प्रोस्टेट, गठिया, अल्सर इत्यादि में लाभप्रद।



बिना कूबड़ वाली नाॅन-इंडियन गायों के मूत्र पीने से पश्चिमी देश के कुछ लोगों को यूर्टिकेरिया लेसिअंस-पित्ती घाव (नीचे देखे) हो गये है। संभावना यह हो सकती है कि ये पश्चिमी गायों को स्टेराॅयड युक्त भोजन दिया गया है। वे लोग अलर्ट पर रहने चाहिए।


आयुर्वेद गोमूत्र को वस्ति (एनेमा) के रूप में प्रशासित करता है। कई मनोवैज्ञानिक विकार हेतु गोमूत्र द्वारा नाक (नस्य) प्रशासन भी किये जाते है।

Cow urine distillate enhances the transport and hence potency of antibiotics, e.g., Rifampicin ( TB drug ) , Tetracycline, and Ampicillin, across the gut wall as well as across artificial membranes. And then it removes the side effects.

गोमूत्र का क्वाण्टम (प्रमात्रा) इफेक्ट द्वारा मानव शरीर में लम्बे समय की एलीपैथी दवाओं के उपयोग करने से जमे हुए घातक रसायनों को खत्म कर देती है और साइड़ इफैक्ट का भय भी समाप्त हो जाता है।


याद रखना, अगर आपको देशी गाय का दूध घृणित नहीं लगता है तो फिर इसका मूत्र भी घृणित नहीं होता है।


मेरे द्वारा धरती पर सर्वप्रथम इस तथ्य का प्रचारित होता रहेगा कि कूबड़ वाली गाय का गोमूत्र जिसमंत भगवान द्वारा उपहार में दिए गये एन्जाईम्स भी शामिल है, आपको बचा सकता है।


एन्जाईम का मतलब-एक जीवित जीव द्वारा उत्पादित पदार्थ जो एक विशिष्ट जैव रासायनिक प्रतिक्रिया के बारे में लाने के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।  


उदाहरण- एन्जाईम के कई प्रकारों में से सेल्यूलस नामक एक एन्जाईम सेलुलोस (कोशिकारस) को तोड़कर इनको बीटा-ग्लूकोज में परिवर्तित करता है।


साधारण आंतीय खमीर की कोशिकीय दीवार यथा कैण्डिडा प्रजाति मुख्य रूप से सेलुलोस से निर्मित होना पाया जाता है।


सेल्यूलस एक एन्जाईम होता है जो सेलुलोस को तोड़ता है। इस कारण से, जब महत्वपूर्ण संद्रता खमीर कोशिकाओं के संपर्क में आती है तो कोशिकीय दीवार पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाती है और जीवाणु मर जाते हैं।


खमीर को सेल्युलस उत्पादों के लिए प्रतिरोध विकसित करने में असमर्थ होना चाहिए क्योंकि उनके पास अपनी कोशिकीय दीवार को संशोधित करने की क्षमता में कमी है।


यदि कैंडिडा को शरीर के रक्तप्रवाह (ब्लडस्ट्रीम) में घुसने का मौका मिलता है तो यह नाड़ी छिद्रों में पहंुच सकता है और त्वचा, मस्तिष्क सहित शरीर के हर अंग को संक्रमित कर सकता है।


इससे भी बदतर- कैंडिडा यीस्ट (खमीर) की सख्त कोशिका भित्ति/दीवार और इसके चिपचिपे बायोफिल्म इसे एंटीफंगल दवाओं और एंटीफंगल जड़ी-बूटियों से बचाने के लिए पर्याप्त है।


वायरस के लिए कोई वेस्टर्न मेडिसिन नहीं उपलब्ध नहीं है। झूठ का सहारा लेकर जो भी दवाऐं आपको देते हैं उनके बहुत बुरे दुष्प्रभाव/साइड इफेक्ट होते हैं।


कूबड़युक्त वैदिक गाय की सूर्यनाड़ी गोमूत्र में नैनो गोल्ड कोलाइडस (NANO GOLD COLLOIDS) देती है। गोमूत्र में मौजूद स्वर्ण के अत्यंत सूक्ष्म कण (नैनो पार्टिकल्स) मानव शरीर में कैंसर और प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करने वाली अन्य बीमारियों के विरूद्ध सुरक्षा प्रदान करते हैं।


यहां नैनो का अर्थ किसी इकाई का एक अरबवाँ भाग होता है अर्थात अत्यंत सूक्ष्म कण होता है। 

और, कोलाइड/कलिल का अर्थ एक रासायनिक मिश्रण होता है जिसमें एक वस्तु दूसरी वस्तु में समान रूप से परिक्षेपित (कई भागों में फैलाव) होती है। परिक्षेपित वस्तु के कण दूसरी वस्तु के मिश्रण में केवल निलम्बित रहते है ना कि एक विलयन की तरह (जिसमें यह पूरी तरह घुल जाते हैं)।


नैनो गोल्ड कोलाइड्स (NANO GOLD COLLOIDS) एक एंटी-इंफ्लेम्मेटरी (अभिज्वाल्यविरोधी) होते हैं तथा इनमें कोई भी साइड इफेक्ट अथवा दुष्प्रभाव नहीं होता है। ये मानव मस्तिष्क की संकुचित शीर्षग्रंथि में मौजूद कैल्शियम साॅल्ट की मात्रा को कम करता है।


गोमूत्र के पास एन्जाईम्स भी होते हैं जो वायरस, बैक्टिरिया, फुंगी और यीस्ट के सुरक्षित बाहरी आवरण को भंग (डिस्सोल्व) कर सकते हैं।


मानव का मूत्र कभी भी नहीं पीना चाहिए-यह एक विषाक्त एवं अपशिष्ट (कचरा) उत्पाद है।


वेदिक कूबड़यूक्त (हंपड़) गाय कभी भी ऐसी प्रकार की बीमारियों जैसे माइकोप्लाज्मा बोविस, मैडकाउ डिजेस अथवा मिडल ईअर इंफेक्शन से संक्रमित नहीं होती है।

सिर्फ बिना कूबड़ वाली (हम्पलेस) पश्चिमी गायें संक्रमित हैं। ये गायें सूअर से ज्यादा खराब होती है।

श्वेत क्रांति के दौरान हमारे अमूल्य हंपड़ गायों को अनुपयोगी हंपलेस गायों में बदलवा दिये गए थे।

वेदिक हंपड गायें हमको पौष्टिक ए-2 दूध और अमूल्य गोमूत्र तथा गोबर देती हैं।

हंपलेस जर्सी/हाॅल्स्टेन गायें विषाक्त ए-1 दूध एवं विषाक्त मूत्र तथा गोबर देते हैं।


जैसा किस तरह से यूनाईटेड किंगडम (ब्रिटेन) पैर-मुंह संबंधी बीमारी एवं मैडकाउ डिसेज के बाद अपने सभी गायों को चुन-चुन कर मार दिये। यह राष्ट्र यहां तक माइकाॅप्लाज्मा बोविस बीमारी से संक्रमित एक ही गाय से प्रभावित हुए थे और उन हंपलेस गायों की पूरी प्रजाति को चुन-चुन कर मारना पड़ा।

यह गायों को किस तरह प्रभावित करता हैः-

डेरी (दुग्धालय) की गाय एवं गोमांस में लाइलाज स्तन का सूजन की बीमारी..

प्रभावित बछड़ों में से 32 प्रतिशत तक गंभीर निमोनिया खुश्क खांसी की शुरूआत के साथ..

बछड़ों के कान में संक्रमण/इंफेक्शंस, प्रथम लक्षण के रूप में सामान्य तौर से एक लटके हुए कान, कान के शरीर से अलग हो जाने की प्रक्रिया में तथा कुछ केसों में चेहरे तिरछे हो जाना.. 

गर्भपात...

सभी आयुवर्गों के मवेशियों में जोड़ो में सूजन एवं लंगडापन (गंभीर गठिया/साइनोविटीस)..

माइकोप्लाज्मा बोविस एक प्राकृतिक अवायुजीव  (ऑक्सीजन में मृत) है जिसमें कोई भी कोशिकीय दीवार नहीं होती है और इस कारण यह पेनिसिलिन एवं अन्य बीटा लैक्टम एंटीबायोटिक्स के प्रति अवरोधक होता है जो कोशिकीय दीवार संकलन को टारगेट करता है।

उन प्रजाति के विलुप्त होने के कारण किसान वर्ग संक्रमण से मुक्त हो गए और 60 दिनों के लिए खेत जोत कर लेते है जो वे उपार्जन दुबारा कर सकेगे।

भारत में, देशद्रोहियों को इसलिए धन्यवाद देते है कि हमको केवल हंपलेस गायों के विषाक्त ए-1 दूध मिलते हैं।

यह एक सफेद झूठ है कि माइकोप्लाज्मा बोविस से संक्रमित गायों का दूध मानव को प्रभावित नहीं करता है और खाद्य सुरक्षा जोखिम प्रदान नहीं करता है साथ ही मांस, दूध एवं दूध से बने उत्पादों को खाने के बारे में चिंतित होने की जरूरत नहीं है।


मैं गोबर को देख कर कह सकता हूं कि यह हंपड या हंपलेस गाय का है।

हंपड गाय का गोबर के पास चमकता हुआ (बाहरी तैलीय परत) आवरण होता है।

मैं गोबर को सूंघ कर बता सकता हूं कि हंपड गाय का गोबर सुगंधित होता है। मेरे बचपन के दिनों में केरल राज्य में हम ओणम के फूलों को ताजे हंपड गाय के गोबर की परत पर सजाते थे।

मैं अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर नाक बंद कर गोबर की सतह को छूकर बता सकता हूं कि हंपड गाय का अपना सर्वोत्तम पाचन तंत्र होता है।

हिन्दूओं सिर्फ कूबड़ वाली वेदिक गाय का ख्याल रखते है।

सभी हंपलेस पश्चिमी गायों को मार दो। ये सब सूअरों से ज्यादा बुरे हैं। ये विषाक्त ए1 दूध, विषाक्त गोबर और विषाक्त मांस देती है।

प्राचीनकाल में हम गायों की अराधना करते थे क्योंकि इनके गोबर हमारे खेतों को काफी उपजाऊ बनाते थे। ये उपजाऊ खेत सड़ी पत्तियों की मिट्टी (हुमस) से भरा हुआ, लाभदाक जीवाणुओं से आच्छादित एवं केंचुओं (जो मिट्टी में वायु का प्रसार करते हैं) की अधिकता से युक्त होता है। यह सब मिलाकर एक अत्यंत शक्तिशाली प्राकृतिक उर्वरक का निर्माण होता है।

कुत्रिम उर्वरक हमारे पवित्र उपरी मिट्टी की सतहों को प्यासा बना दिया गया है।

55 साल पहले कालिकट (केरल राज्य का एक मुख्य शहर) में जहां सिर्फ दो मेडिकल शाॅप थे इनमें से उन एक शाॅप को छोड़कर जिसका अपना कुख्यात समलैंगिक (होमोसेक्सुअल) ग्राहक होता था, हमारा एकमात्र कामचलाऊ शाॅप था जो मेरे घर से ज्यादा दूर था।
आज कालिकट में हमारे पास एक हजार से ज्यादा मेडिकल शाॅप है। सभी शाॅप ग्राहकों से भरे हुए रहते हैं। इसका एकमात्र मुख्य कारण हंपलेस गायों का विषाक्त ए1 दूध है।

हंपड गायों का मूत्र/यूरीन शरीर मंे निर्मित हानिकारक बैक्टिरिया और वायरसों के सुरक्षात्मक परत को चुनकर पिघला देता है। इसी कारण से वेदिक हंपड गायें पवित्र मानी जाती है। ताजे गोमूत्र की सिर्फ आधा चम्मच यह काम कर सकता है।

भारत में आज हमारे पास हंपलेस गाय है जबकि आज विदेशियों के पास हमारे हंपड वेदिक गाय है। इतनी सफाई से अदल-बदल हुए।

हंपलेस पश्चिमी गायों की गोमांस लाॅब्बी (समर्थक वर्ग) ही ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण है जो मीथेन एवं नाईट्रोअस ऑक्साइड के ग्रीनहाउस गैसों से उत्पन्न होता है।

ये भक्षक (ठूंस ठूंस कर खाने वाला) हंपलेस गायें मीथेन गैस पाद कर निकालती है और इनके मूत्र और गोबर नाइट्रियस ऑक्साईड गैस को निर्मित करती है।

जबकि, वेदिक हंपड गायें इन हंपलेस गायों की तुलना में सिर्फ पांच प्रतिशत मीथेन गैस पाद देती है।

भारत में कृषि भूमि के प्रत्येक एकड के पास पांच वेदिक हंपड गायें आवश्यक रूप से होनी चाहिए। जो नाइट्रोजन से भरे हुए हानिकारक कुत्रिम उर्वरकों से छुटकारा दिला सकते हैं।

अब हमें हमारी पवित्र शीर्ष मिट्टी भूमि को पुनः प्राप्त अथवा पुनः कृषि योग्य करनी चाहिए जो अंतर्निहित वेदिक गोल्डन मीन 1.618 के साथ दिव्य भोजनों का उत्पादन किया करती थी।

सिर्फ 55 वर्षों की हरित क्रांति (कुत्रिम उर्वरक एवं कीटनाशक/ पेस्टीसाइड्स) के कारण भारत के 90 प्रतिशत झीलों-सरोवरों नष्ट हो गये या लुप्तप्रायः हो गये थे जो सैकड़ो वर्षों से ज्यादा समय के लिए अपनी मूल स्थिति में थे। 

आज पश्चिम देश हंपड गाय का मांस खाना चाहते है। 

आयुर्वेद के अनुसार मानव को होने वाली 90 प्रतिशत बीमारियां आंतों में उत्पन्न होती है।

हंपड गाय पौष्टिक दूध देती है जिसका एक छोटा गिलास हंपलेस गायों के हजारों लीटर विषाक्त दूध से ज्यादा बेहतर होता है।

हंपड वेदिक गाय का मूत्र अच्छे जीवाणुओं को छोडकर सभी बैक्टिरिया, वायरस और कीटाणु के बाहरी कवच को चुनकर पिघला देती है।

हम भारतीय लोग हंपलेस पश्चिमी गायें को सुअर से ज्यादा बुरे के रूप में मानते है जो विषाक्त ए1 मिल्क, मूत्र, गोबर एवं मांस देते हैं।

हंपड गाय, चाहे बाँझ हो जो दूध नहीं देती है, छोटे बछडें अमूल्य गोमूत्र और गोबर देने के लिए भी उपयोगी होते हैं।

सूर्यनाड़ी के कारण हंपड गाय का गोमूत्र में कई नैनो गोल्ड कोलाइड मौजूद होते हैं। ये नैनो कोलाइडस मानव शरीर में मौजूद किसी बैक्टिरिया या वायरस की परतों को पिघला सकते हैं। आधा चम्मच ताजा गोमूत्र पीना ही एकमात्र रास्ता है जो बुद्धिहास को रोका जा सकता है।

सैकड़ो सालों तक नकरात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए हंपड गाय के गोबर का प्रयोग किया जाता था और पवित्र गंगा जल के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाता था। केवल गंगा जल में नैनो सिल्वर कोलाइड और बैक्टिरियोफेजेस मौजूद होते है।

नैनो गोल्ड कलाइडस (हंपड गोमूत्र) और सिल्वर (गंगाजल) मस्तिष्क के खून का अवरोध (Blood Brain Barrier) भंग कर सकता है। यह कोई अंधविश्वास नहीं है।

यही कारण है कि हम हंपड वेदिक गाय को इतना पवित्र क्यों मानते हैं।

हंपलेस गाय के मांस की लाॅबी (व्यापारिक प्रतिष्ठानों का समूह) ही ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है। ये गाय हानिकारक मीथेन गैस बहुत ज्यादा अपने गुदाद्वार से हवा में फैलाती है (फार्ट/पाद)। इनके कुत्रिम उर्वरकों से प्राप्त चारे खाने के कारण मूत्र और गोबर खतरनाक नाइट्रिय ऑक्साइड से भरे हुए होते है।

विषाक्त हंपलेस गाय के मांस खाने से पश्चिमी देशों में अल्जीमर (गंभीर दिमागी बीमारी) फैल रही है।

अपने वतन यानि भारत को बचाने के लिए सभी विदेशी गायों को नष्ट कर देना चाहिए।

अपनी शीर्ष मिट्टी को पुनः दिव्य बनाने के लिए वेदिक हंपड गायों के गोबर का उपयोग करते हुए आॅरगानिक/जैविक कृषि की तरफ वापस जाना चाहिए।


कैप्टन अजित वड़कयिल
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